18:09

अध्यात्म ही है दुखों का स्थाई अंत (In Hindi)

by Vikas Arya

Rated
5
Type
talks
Activity
Meditation
Suitable for
Everyone
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43

The Audio is in the Hindi language. We have been trying to find a solution for the suffering. Enlightened people have shown us the path, even we from our learning came to a realization that the path to end suffering permanently is possible only by walking the spiritual path. But what is the spiritual path? What does it mean to be spiritual? We provide a simple, unique yet very accurate definition of spirituality. Once we understand what spirituality is, we discuss how it can end the suffering!

SufferingImpermanenceSelf InquiryInner PeaceMindfulnessIllusionTranscendenceSpiritual PathUnderstanding SufferingMindfulness PracticeIllusion And RealitySpirits

Transcript

नमस्कार!

हम जिस दुनिया में रहते हैं,

वैं पल-पल बदल रही हैं.

इसमें रहने वाले लोगों की सोच बदल रही हैं.

लोगों का बरताव और वेक्तित्व बदल रहा हैं.

इस बदलते संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है.

हमारे विचार,

हमारी धारनाई,

हमारी सोच,

हमारी पसंद,

नापसंद,

सब बदल रहे हैं.

अगर कुछ नहीं बदल रहा है,

तो वो है हमारे दुखों का थाई अंत.

इन दुखों का हम पर इतना प्रभाव है कि हमने दुखों के साथ या तो समझोता कर लिया है,

या अपने विक्तित्व में ऐसे परिवर्तन कर लिये है,

जिससे हम दुखों से कम से कम दुखी हूं.

लेकिन ये भी एक ऐसी दौड साबित हो रही है,

जिसमें अपने अंदर परिवर्तन करते रहने की आवशक्ता है.

इन परिवर्तनों को हम अपने सपनों को साकार करने के तरीकों के रुप में जानते हैं,

चाहे ये तरीके हमारे आचरण के बदलाव के हूं,

नई तक्नीके सीखने के हूं,

किरी नई शोद या रिशच से प्रभावित हूं,

पूजा पाठ,

ग्रह गती या स्थिती इत्यादी हूं,

ये अपनी जागरुक्ता को बढ़ाने के नए सादन हूं,

ये सबी और ऐसे कहीं कारे,

ऐसे कहीं तरीके,

ये सब अपने सपनों को साकार और दुखों से दूर जाने हमारे दुखों का स्थाई अंत कर सकते हैं,

या ये हमारे दुखों को स्थाई रूप से दूर कर सकते हैं,

और अगर ये सबी सादन अस्थाई हैं,

यानि ये दुखों को स्थाई रूप से दूर नहीं कर सकते हैं,

तो क्या हमें इन सादनों के पीछे भागना चाहिए?

यही असमंजस की स्थिती जब से शुष्टी का नर्मान हुआ है,

तव से मानव के साथ चली आ रही हैं.

बिन-बिन समय में बिन-बिन लोगों ने भाती-भाती प्रकार के सादनों पे प्रयोक किये,

और इस निस्काश पर पहुँचे,

कि हमें ऐसे सादन खोजने चाहिए,

जो हमें दुखों से स्थायी रूप से मुक्ति दिला सके.

उनके एनेको वर्षों के प्रयोगों से यह यूँ कहें कि प्रकर्ती और इश्वर-शक्ती के प्रभाव से,

उन्होंने यह जाना कि दुखों का स्थायी समाधान केवल एक मार्ग से संभाव है और वो है अध्यात्म का मार्ग.

इससे पहले कि हम यह समझें कि कैसे अध्यात्म ही दुखों का स्थायी अंथ है,

हमें यह समझना आवश्यक है कि अध्यात्म वास्तविक्ता में है क्या?

क्या अध्यात्म किसी धर्म से संबंदित है?

क्या अध्यात्म किसी रीती रिवाज स्थान,

प्रजाती या स्थल से संबंदित है?

और अगर है,

तो इन में से कौन सा मार्ग सही है?

क्योंकि संसार भर में जितने धर्म,

जाती,

रीती,

रिवाज या दी हैं,

उतने ही भाती भाती प्रकार की प्रथायें भी हैं.

तो प्रश्न ये उठता है कि सही गलत का चुनाव कैसे करें?

संतुष्टी की बात ये है कि सही गलत का चुनाव बहुत ही सरल है.

क्योंकि अध्यात्म का इन में से किसी से सम्बंद नहीं है.

अध्यात्म ना तो किसी धर्म से जुड़ा है और नहीं इसका किसी अन्ने मानव रचित रचना से कोई सम्बंद है.

संसार के सही धर्म या रीती,

रिवाज किसी ना किसी मानव ने निर्मित कियें और अध्यात्म एक ऐसी प्राकर्तिक संपदा है,

जिसे उस शक्ती ने निर्मित किया है,

जिसने सब को वनाया है.

अध्यात्म वैसी और उतनी ही प्राकर्तिक है,

जैसे हवा,

पानी,

अगनी,

आकाश और धर्ती,

जिनने हम पांच तत्वों के रूप में जानते हैं.

अध्यात्म वैसी ही प्राकर्तिक है,

जैसे मन और आत्मा.

अब प्रश्न ये है कि वास्तव में अध्यात्म क्या है,

और हम कैसे अध्यात्मिक होके अपने दुखों का निवारण करें?

अध्यात्म शब्द के काफी अर्थ हैं,

लेकिन मेरी परिवाशा के अनुसार अध्यात्म है अपनी आत्मा का अध्यन.

अपनी आत्मा के अध्यन और उसके भिन तरीकों को अध्यात्म कहते हैं.

ये सभी तरीके हमें अपने अचली स्वरूप को जानने में सक्षम बनाते हैं.

जैसे जैसे हम अपने अचली स्वरूप का अनुभव करने लगते हैं,

वैसे वैसे हमारे दुखों का निवारण होने लगता है.

अब आपका प्रशन ये होगा कि आत्मा के अध्यन से दुखों का समाधान कैसे हो सकता है?

इसके लिए हमें दुख क्या है और उनके कार्णों को समझना पड़ेगा.

वैसे तो एक ऐसा विशे है जिसके बारे में विस्तार से अध्यन करने में काफी समय लगेगा.

लेकिन अगर हम संख्षेप में जाने तो दुख किसी भी अभिष्ठ या अभिलाशित यह यूँ कहें कि चाहत की वस्तो का ना होना है.

इसे हम किसी वस्तो का अभाव भी कह सकते हैं.

आपको उसी का दुख हो सकता है जो आपको चाहिए परन्तो वो आपके पास नहीं है.

अब आप कहेंगे कि दुख तो हमें अपने भी देते हैं तो आपकी सोच सही है कि दुख हमें अपने भी देते हैं पर उनका वही आच्छर हमें दुख देता है जो हमारी आशा और अपेक्षा के अनुरोप नहीं होता.

जब भी हमारे अपने कुछ ऐसा करते हैं जिसकी हम आशा करते हैं या जिसे हम अच्छा मानते हैं तो हमें सुख या खुशी की एनुगोती होती है और इसके विपरित जब वो कुछ ऐसा करते हैं जो हमें पसंद नहीं है तो हम दुखी होते हैं.

तो इससे ये पता चलता है कि लोग हमें दुख या सुख नहीं देते लेकिन उनके आचरण के परती हमारी सही गलत की सोच हमें दुख या सुख देती है तो इस दुश्ची को उनसे देखें तो दुखो और सुखो का कारण हमारे अंदर ही है बाहर होने वाली चीजे ये अ तो उसे हमें कहां डूनना चाहिए निश्चित ही उसे हमें अपने अंदर डूनना चाहिए और उसका समाधान भी हमें अपने अंदर ही मिलेगा और हमें अपने अंदर जाकने का माल अध्यात्म में मिलता है अब आप इसके अपवाद के रूप में ये कह सकते हैं कि सभी दुख हमारी परिवाशा पर अधारित नहीं होते पर वो दूसरों के क्रित्यों या कर्मों पर अधारित होते हैं उधारन के लिए अगर कोई हमें चोट पहुंचाता है तो ये हमारी परिवाशा से कैसे सम्मंदित है क्योंकि चोट तो भौतिक है दुख हमें शारेरिक भी हो सकता है और होता भी है तो इसके लिए हमें ये समझना पड़ेगा कि हम जिस भौतिक संसार में रहते हैं उसमें हमें प्रकर्ति के नियमों का पालन करना पड़ता है इन में से लगबक सभी कारण हमारी शमता से ये यू कहें कि हमारे नियंतरन से परे हैं लेकिन अगर हम वास्तविक्ता में देखें तो ये हमारी शमता से परे नहीं है अगर हम अपने अच्ली स्वरूप को पैचानने लगे तो ये सभी हमारी शमता और हमारे नियंतरन में � ये जब तक हमें अपनी शमता का आभास नहीं होता तब तक ये दुख हमें जेलने ही पड़ते हैं हमारी शमता को जानने के लिए हमें अपने स्वरूप को जानना पड़ेगा और हमें अपने स्वरूप को जानने के लिए अपने अंदर जाकना पड़ेगा और अपने अंदर जाकने की प्रक्रिया ही अध्यात्म है अब जब आप ये समझ गए हैं कि दुखों का कारण क्या है और अध्यात्म क्या है आप ये प्रशन कर सकते हैं कि इससे दुखों का स्थाई अंत कैसे हो सकता है स्थाई अंत को समझने के लिए स्थाई और अस्थाई दोनों समझने पड़ेंगे स्थाई वो है जो सदैव के लिए है और सदैव वैसे ही है जो शुरू होता है वे अंत भी होता है तो वो स्थाई नहीं हो सकता स्थाई वे है जो ना शुरू होता है और नहीं ही अंत जैसे हमारी आत्मा यह यूँ कहें कि हमारा असली स्वरूप हमारे विचार,

उनकी इत्पत्ती,

उनका प्रभाव हमारे दुख सुक्की परिभाशा हमारी पसंद,

नापसंद यहां तक कि हमारी वो पैचान या रिष्टे नाते कुछ भी ऐसा नहीं है जो हमेशा रहे यानि यह सब अस्थाई हैं क्योंकि यह सब समय के साथ परिवर्टित अवश्य होंगे दुखों का समाधान दो मारगों से संभाव है पहला है भौतिक जीवन में दुखों का अंत और दूसरा है दुखों से हमेशा के लिए छुटकारा दोनों का समाधान एक है और वो है अंतरमुकी होना अपने विचारों और उनके कारण और उनके प्रभाव के बारे में ज्यान अर्जित करना जैसे जैसे आप अपने साथ समय वैतीत करते हैं और ध्यान या मेडिटेशन करते हैं आप पाते हैं कि आपके ज्यान में विद्धी हो रही है ये ज्यान आपको आपके दुख के समाधान का मार्ग भी देगा और उसके निवारन की शम्ता भी आप देखेंगे कि इसी भौतिक जीवन में आप कम से कम उन दुखों पर नियंतन पा रही हैं जो आपके दुश्टिकों पर आधारत हैं दूसरों के दिये दुख,

शारीरिक दुख,

भौतिक दुख इन सब के समाधान के लिए आपको अंदर और गहरही में जाना पड़ेगा आपको अपने सुक्षम शरीर का अनुभव करना पड़ेगा जिससे आपको ये भौतिक शरीर और उस से जुड़े अनुभव प्रभावित ना कर सके इसके आगे जब हम प्रकर्ती की बात करें तो जब हम अपने सुक्षम शरीर से भी परे चले जाते हैं तो हम पर प्रकर्ती का भी प्रभाव नहीं पड़ता तो हम पर प्रकर्ती के नियम भी मानने नहीं होते और हम पर प्रकर्ती के नियमों से उतपंद जो दुख है उनका असर नहीं होता आप कहेंगे कि यह सा कैसे संभव है इसके लिए कल्पना कीजी कि आप किसी से बात कर रहे हैं यह किसी चीज को करने में पूर्णता खुए हुए हैं ऐसे समय में आपको भूक,

प्यास,

सर्दी,

गर्मी यह कहीं बार तो आपके पास किसी के होने यह नहोने का आभास भी नहीं होता कहीं बार तो ऐसा होता है कि आपके अपने आपको पुकारते हैं पर आप उस आभास को सुन नहीं पाते पर जब आपका ध्यान वापस आता है यह आपका ध्यान इन चीजों पर आता है तो आपको एक दम से ये चीजें प्रभावित करने लगती हैं जिस चीज में आप मगन थे उससे आपका ध्यान जब अपने आपका ध्यान वापस आता है तो आपका ध्यान प्रभावित करने लगती है जब अपने आपका ध्यान वापस आता है तो आपका ध्यान प्रभावित करने लगती है एकदम से आप पाएंगे कि आपको या तो थंड या गर्मी लगने लगती है अब ध्यान देने की बात यह है कि वो गर्मी या थंड या भूक या प्यास या वो वेक्ती तो पहले से वही थे लेकिन क्योंकि आपका ध्यान वाह नहीं था आपको उनका कोई प्रभाव नहीं पढ़ा लेकिन जैसे ही आपका ध्यान उन पर आया तो आपपर प्रभाव पढ़ने लग गया आप इसको दूसरे उधारण से समझें तो जैसे कक्षा में कोई अध्यापक जब पढ़ाता है तो कई बार हमार ध्यान कहीं और चला जाता है हमार ध्यान के कहीं और जाने से हमें वो घ्यान नहीं मिल पाता जो अध्यापक हमें दे रहा है इस घ्यान के अभाब में वो हम नहीं सीख पाते जो हम सीख तो सकते थे पर सीख नहीं पाए क्योंकि हमार ध्यान कहीं और था घ्यान के वहीं होते वे भी वे हमारी पौंच से बार था इसको एक और उधारन से समझें तो अगर आपसे कोई अपशब्द कहता है या आपकी बुराई करता है लेकिन अगर आपका ध्यान कहीं और है आप उसकी बात नहीं सुन पाते हैं तो आपपर उसके अपशब्दों का या उस बुराई का असर नहीं होता ऐसा नहीं है कि उसने अपशब्द नहीं कहे या आपकी बुराई नहीं की लेकिन क्योंकि आपका ध्यान वहां नहीं था तो आपपर उसका प्रभाव नहीं पड़ा इसका आर्थ यह है कि हमारा ध्यान और हमारी सोच किसी दुख के होते वे भी हमें उस दुख से दूर ले जा सकते हैं अब इसको एक दूसरे द्रिश्टी कौन से देखें और ये कल्पना करें कि हम अंधेरे में कहीं जा रहे हैं और हमें ये अबास हो कि सामने सांप है तो हम डर जाते हैं हमें अपने जीवन का भैं होता है हम दुखी होने लगते हैं लेकिन जब हम साहस करके आगे बढ़ें या वहाँ पर उजाला हो जाए प्रकाश आ जाए और हमें ये पता चले कि जिसको हम सांप समझ रहे थे वो तो रसी थी तो आप जानेंगे कि सांप आपको दुख नहीं दे रहा था आप तो रसी से दुखी हो रहे थे रसी के सांप होने का ब्रह्म ऐसे ही ब्रह्म और हमारी ब्राति जो की ज्यान और वास्तविक्ता का भाव है वो हमें किसी के ना होते वे भी दुख देता है अध्यात्म की मार पर आप जितना जाएंगे उतना ही आपको ज्यान अरजित होगा और जितना आपको ज्यान मिलेगा उतने ही ब्रह्म या ब्रातिया या वो जो नहीं है उसका डर भी समाफ्त होगा वास्तविक्ता में ये विशे काफी शोद करने वाला है और केवल कुछ समय में सब कुछ विस्तार पूर बता पाना बाशा के लिए समभव नहीं है इसलिए आप या तो इस विशे में अपनी ओर से शोद करें जिसमें निश्चत ही समय बतीत होगा या हमारे से पहले और हम से ज़्यादा समझ रखने वाले उन लोगों के दिखाए मारब पर चलें जो हमें दुखों से निश्चत ही दूर ले जाता है आप क्या करते हैं ये मैं आप पर छोड़ता हूँ आप चहे जो भी करें बस अपने अंदर जाकने का प्रयास जारी रखें अपने को पहचानने का अपने असली स्वरूप को जानने का और अपनी अंतरात्मा में जाने का प्रयास करते रहें और आप देखेंगे आपको आपका मारग आपके दुखों का स्थायी अंत स्वतय ही मिल जाएगा इस आशा से कि आप अपने गंतव यानि अपने दुखों का स्थायी समाधान पाने में समर्च रहेंगे नमस्कार

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Vikas AryaCarmel, IN, USA

5.0 (9)

Recent Reviews

Shayla

December 6, 2022

दुःख हो या सुख जब सदा संग रहे ना कोई फिर दुःख को अपनाइये के जाये तो दुःख ना होए राही मनवा दुख की चिन्ता क्यूँ सताती है दुःख तो अपना साथी है Thank you Namaste 🙏

VijayRam

February 12, 2022

Waah, ati sundar. Adhyatm ke bina dukh hi dukh hai jindagi. Jankaari or sahi soch, samajh hi najariya badalti hai, jeene ka. Dhanyawad Arya🙏

Manita

February 11, 2022

अपना ज्ञान साँझा करने और हमारा सही मार्गदर्शन करने के लिए , आपका बहुत- बहुत धन्यवाद!

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